Tuesday, October 30, 2018

जो भजे हरि को सदा, सोही परम पद पावेगा

जो भजे हरि को सदा, सोही परम पद पावेगा |

देह के माला, तिलक और छाप, नहीं किस काम के,
प्रेम भक्ति बिना नहीं नाथ के मन भावे |

दिल के दर्पण को सफा कर, दूर कर अभिमान को,
ख़ाक को गुरु के कदम की, तो प्रभु मिल जायेगा |

छोड़ दुनिए के मज़े सब, बैठ कर एकांत में,
ध्यान धर हरि का, चरण का, फिर जनम नही आयेगा |

द्रिड भरोसा मन मे करके, जो जपे हरि नाम को,
कहता है ब्रह्मानंद, बीच समाएगा |

पायो जी मैंने राम रतन धन पायो


पायो जी मैंने राम रतन धन पायो |

वस्तु अमोलिक दी मेरे सतगुरु |
कृपा कर अपनायो ||

जन्म जन्म की पूंजी पाई |
जग में सबी खुमायो ||

खर्च ना खूटे, चोर ना लूटे |
दिन दिन बढ़त सवायो ||

सत की नाव खेवटिया सतगुरु |
भवसागर तरवयो ||

मीरा के प्रभु गिरिधर नगर |
हर्ष हर्ष जस गायो ||

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया

सूरज की गर्मी से जलते हुए तन को मिल जाये तरुवर की छाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया, मेरे राम |

भटका हुआ मेरा मन था, कोई मिल ना रहा था सहारा |
लहरों से लगी हुई नाव को जैसे मिल ना रहा हो किनारा |
इस लडखडाती हुई नव को जो किसी ने किनारा दिखाया,
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||

शीतल बने आग चन्दन के जैसी राघव कृपा हो जो तेरी |
उजयाली पूनम की हो जाये राते जो थी अमावस अँधेरी |
युग युग से प्यासी मुरुभूमि ने जैसे सावन का संदेस पाया |
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||

जिस राह की मंजिल तेरा मिलन हो उस पर कदम मैं बड़ाऊ |
फूलों मे खारों मे पतझड़ बहारो मे मैं ना कबी डगमगाऊ |
पानी के प्यासे को तकदीर ने जैसे जी भर के अमृत पिलाया |
ऐसा ही सुख मेरे मन को मिला है, मैं जब से शरण तेरी आया | मेरे राम ||

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले - २
गोविन्द नाम लेकर, फिर प्राण तन से निकले 

श्री गंगा जी का तट हो,
यमुना का वंशीवट हो
मेरा सांवरा निकट हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

पीताम्बरी कसी हो
छवि मन में यह बसी हो
होठों पे कुछ हसी हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

श्री वृन्दावन का स्थल हो
मेरे मुख में तुलसी दल हो
विष्णु चरण का जल हो
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

जब कंठ प्राण आवे
कोई रोग ना सतावे
यम दर्शना दिखावे
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

उस वक़्त जल्दी आना
नहीं श्याम भूल जाना
राधा को साथ लाना
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

सुधि होवे नाही तन की
तैयारी हो गमन की
लकड़ी हो ब्रज के वन की
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

एक भक्त की है अर्जी
खुदगर्ज की है गरजी
आगे तुम्हारी मर्जी
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

ये नेक सी अरज है
मानो तो क्या हरज है
कुछ आप का फरज है
जब प्राण तन से निकले
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले

अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं

अच्चुतम केशवं कृष्ण दामोदरं,
राम नारायणं जानकी बल्लभम ।

कौन कहता हे भगवान आते नहीं,
तुम भक्त मीरा के जैसे बुलाते नहीं।

कौन कहता है भगवान खाते नहीं,
बेर शबरी के जैसे खिलाते नहीं।

कौन कहता है भगवान सोते नहीं,
माँ यशोदा के जैसे सुलाते नहीं।

कौन कहता है भगवान नाचते नहीं,
गोपियों की तरह तुम नचाते नहीं।

नाम जपते चलो काम करते चलो,
हर समय कृष्ण का ध्यान करते चलो।

याद आएगी उनको कभी ना कभी,
कृष्ण दर्शन तो देंगे कभी ना कभी।

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो।
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो॥

तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे,
कोई ना अपने सिवा तुम्हारे।
तुम्ही हो नईया, तुम्ही खिवईया,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो॥

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं,
तुम्हारे चरणों की धूल हम हैं।
दया की दृष्टि सदा ही रखना,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो॥

जनम तेरा बातों ही बीत गयो

जनम तेरा बातों ही बीत गयो, 
रे तुने कबहू ना कृष्ण कहो,

पाँच बरस का भोला भाला, अब तो बीस भयो,
मगर पचीसी माया का कारन, देश विदेश गयो,
पर तूने कबहू ना कृष्ण कहो,

तीस बरस की अब मति उपजी, लोभ बढ़े नित नयो,
माया जोड़ी तूने लाख करोड़ी, अजहू न तृप्त भयो,
तुने कबहू ना कृष्ण कहो,

वृद्ध भयो तब आलस उपज्यो, कफ नित कंठ नयो,
साधू संगति कबहू न किन्ही रे तूने, बिरथा जनम गयो,
तुने कबहू ना कृष्ण कहो,

ये संसार मतलब का लोभी, झूठा ठाठ रटो,
कहत कबीर समझ मन मूरख, तूं क्यूँ भूल गयो,
तुने कबहू ना कृष्ण कहो,

ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां

ठुमक चलत रामचंद्र, बाजत पैंजनियां |

किलकि किलकि उठत धाय, गिरत भूमि लटपटाय |
धाय मात गोद लेत, दशरथ की रनियां ||

अंचल रज अंग झारि, विविध भांति सो दुलारि |
तन मन धन वारि वारि, कहत मृदु बचनियां ||

विद्रुम से अरुण अधर, बोलत मुख मधुर मधुर |
सुभग नासिका में चारु, लटकत लटकनियां ||

तुलसीदास अति आनंद, देख के मुखारविंद |
रघुवर छबि के समान, रघुवर छबि बनियां ||

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्

श्रीरामचन्द्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम् ।
नवकञ्ज लोचन कञ्जमुख कर कञ्जपद कञ्जारुणम् ॥ १ ॥

कंदर्प अगणित अमित छबि नव नील नीरज सुन्दरम् ।
पटपीत मानहुं तड़ित रूचि-शुची नौमि जनक सुतावरम् ॥ २ ॥

भजु दीन बन्धु दिनेश दानव दैत्यवंशनिकन्दनम् ।
रघुनन्द आनंदकंद कोशल चन्द दशरथ नन्दनम् ॥ ३ ॥

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणम् ।
आजानुभुज शर चापधर सङ्ग्राम-जित-खर दूषणम् ॥ ४ ॥

इति वदति तुलसीदास शङ्कर शेष मुनि मनरञ्जनम् ।
मम हृदयकञ्ज निवास कुरु कामादि खलदलगञ्जनम् ॥ ५ ॥

मनु जाहीं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो ।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥ ६ ॥

एही भांति गोरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली ।
तुलसी भावानिह पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥ ७ ॥ 

जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥८॥

प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो

प्रभु मेरे अवगुण चित ना धरो |
समदर्शी प्रभु नाम तिहारो, चाहो तो पार करो ||

एक लोहा पूजा मे राखत, एक घर बधिक परो |
सो दुविधा पारस नहीं देखत, कंचन करत खरो ||

एक नदिया एक नाल कहावत, मैलो नीर भरो |
जब मिलिके दोऊ एक बरन भये, सुरसरी नाम परो ||

एक माया एक ब्रह्म कहावत, सुर श्याम झगरो |
अबकी बेर मोही पार उतारो, नहि पन जात तरो ||

अब लौं नसानी, अब न नसैहों।

अब लौं नसानी, अब न नसैहों। रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥ पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं। स्याम रूप सुचि रुचिर कस...