Saturday, December 23, 2017

गवना कराइ सैंया घर बइठवले

गवना कराइ सैंया घर बइठवले से,
अपने लोभइले परदेस रे बिदेसिया।।
चढ़ली जवनियाँ बैरन भइली हमरी रे,
के मोरा हरिहें कलेस रे बिदेसिया।।
दिनवाँ बितेला सइयाँ वटिया जोहत तोरा,
रतिया बितेला जागि-जागि रे बिदेसिया।।
घरी राति गइले पहर राति गइले से,
धधके करेजवा में आगि रे बिदेसिया।।
आमवाँ मोररि गइले लगले टिकोरवा से,
दिन-पर-दिन पियराय रे बिदेसिया।।
एक दिन बहि जइहें जुलमी बयरिया से,
डाढ़ पात जइहें भहराय रे बिदेसिया।।
भभकि के चढ़लीं मैं अपनी अँटरिया से,
चारो ओर चितवों चिहाइ रे बिदेसिया।।
कतहूँ न देखीं रामा सइयाँ के सूरतिया से,
जियरा गइले मुरझाइ रे बिदेसिया।।



 हमरा बलमु जी के बड़ी-बड़ी अँखिया से,
चोखे-चोखे बाड़े नयना कोर रे बटोहिया।
ओठवा त बाड़े जइसे कतरल पनवा से,
नकिया सुगनवा के ठोर रे बटोहिया।
दँतवा ऊ सोभे जइसे चमके बिजुलिया से,
मोंछियन भँवरा गुँजारे रे बटोहिया।
मथवा में सोभे रामा टेढ़ी कारी टोपिया से,
रोरी बूना सोभेला लिलार रे बटोहिया।।


 करिके गवनवा, भवनवा में छोडि कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ।
अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ।
गुलमा के नतिया, आवेला जब रतिया, तिल भर कल नाही परेला बलमुआ।
का कईनी चूकवा, कि छोडल मुलुकवा, कहल ना दिलवा के हलिया बलमुआ।
सांवली सुरतिया, सालत बाटे छतिया, में एको नाही पतिया भेजवल बलमुआ।
घर में अकेले बानी, ईश्वरजी राख पानी, चढ़ल जवानी माटी मिलेला बलमुआ।
ताक तानी चारू ओर, पिया आके कर सोर, लवटो अभागिन के भगिया बलमुआ।
कहत 'भिखारी' नाई, आस नइखे एको पाई, हमरा से होखे के दीदार हो बलमुआ।

बारहमासा / भिखारी ठाकुर

 बारहमासा / भिखारी ठाकुर

आवेला आसाढ़ मास, लागेला अधिक आस,
बरखा में पिया रहितन पासवा बटोहिया।

पिया अइतन बुनिया में,राखि लिहतन दुनिया में,
अखरेला अधिका सवनवाँ बटोहिया।

आई जब मास भादों, सभे खेली दही-कादो,
कृस्न के जनम बीती असहीं बटोहिया।

आसिन महीनवाँ के, कड़ा घाम दिनवाँ के,
लूकवा समानवाँ बुझाला हो बटोहिया।

कातिक के मासवा में, पियऊ का फाँसवा में,
हाड़ में से रसवा चुअत बा बटोहिया।

अगहन- पूस मासे, दुख कहीं केकरा से?
बनवाँ सरिस बा भवनवाँ बटोहिया।

मास आई बाघवा, कँपावे लागी माघवा,
त हाड़वा में जाड़वा समाई हो बटोहिया।

पलंग बा सूनवाँ, का कइली अयगुनवाँ से,
भारी ह महिनवाँ फगुनवाँ बटोहिया।

अबीर के घोरि-घोरि, सब लोग खेली होरी,
रँगवा में भँगवा परल हो बटोहिया।

कोइलि के मीठी बोली, लागेला करेजे गोली,
पिया बिनु भावे ना चइतवा बटोहिया।

चढ़ी बइसाख जब, लगन पहुँची तब,
जेठवा दबाई हमें हेठवा बटोहिया।

मंगल करी कलोल, घरे-घरे बाजी ढोल,
कहत ‘भिखारी’ खोजऽ पिया के बटोहिया।

बेटी विलाप / भिखारी ठाकुर



बेटी विलाप / भिखारी ठाकुर


गिरिजा-कुमार!, करऽ दुखवा हमार पार;
ढर-ढर ढरकत बा लोर मोर हो बाबूजी।
पढल-गुनल भूलि गइलऽ, समदल भेंड़ा भइलऽ;
सउदा बेसाहे में ठगइलऽ हो बाबूजी।
केइ अइसन जादू कइल, पागल तोहार मति भइल;
नेटी काटि के बेटी भसिअवलऽ हो बाबूजी।
रोपेया गिनाई लिहलऽ, पगहा धराई दिहलऽ;
चेरिया के छेरिया बनवलऽ हो बाबूजी।
साफ क के आँगन-गली, छीपा-लोटा जूठ मलिके;
बनि के रहलीं माई के टहलनी हो बाबूजी।
गोबर-करसी कइला से, पियहा-छुतिहर घइला से;
कवना करनियाँ में चुकली हों बाबूजी।
बर खोजे चलि गइलऽ, माल लेके घर में धइलऽ;
दादा लेखा खोजलऽ दुलहवा हो बाबूजी।
अइसन देखवलऽ दुख, सपना भइल सुख;
सोनवाँ में डललऽ सोहागावा हो बाबूजी।
बुढऊ से सादी भइल, सुख वो सोहाग गइल;
घर पर हर चलववलऽ हो बाबूजी।
अबहूँ से करऽ चेत, देखि के पुरान सेत; डोला
काढ़ऽ, मोलवा मोलइहऽ मत हो बाबूजी।
घूठी पर धोती, तोर, आस कइलऽ नास मोर;
पगली पर बगली भरवलऽ हो बाबूजी।
हँसत बा लोग गॅइयाँ के, सूरत देखि के सँइयाँ के;
खाइके जहर मरि जाइब हम हो बाबूजी।
खुसी से होता बिदाई, पथल छाती कइलस माई;
दूधवा पिआई बिसराई देली हो बाबूजी।
लाज सभ छोडि़ कर, दूनो हाथ जोडि़ कर;
चित में के गीत हम गावत बानीं हो बाबूजी।
प्राणनाथ धइलन हाथ, कइसे के निबही अब साथ;
इहे गुनि-गुनि सिर धूनत बानी हो बाबूजी।
बुद्ध बाड़न पति मोर, चढ़ल बा जवानी जोर;
जरिया के अरिया से कटलऽ हो बाबूजी।
अगुआ अभागा मुँहलागा अगुआन होके;
पूड़ी खाके छूड़ी पेसि दिहलसि हो बाबूजी।
रोबत बानी सिर धुनि, इहे छछनल सुनि;
बेटी मति बेंचक दीहऽ केहू के हो बाबूजी।
आपन होखे तेकरो के, पूछे आवे सेकरों के;
दीहऽ मति पति दुलहिन जोग हो बाबूजी।

अब लौं नसानी, अब न नसैहों।

अब लौं नसानी, अब न नसैहों। रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥ पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं। स्याम रूप सुचि रुचिर कस...